ब्लैक बॉक्स क्या है?

हाल ही में अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की एक फ्लाइट के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर ने विमानन सुरक्षा को लेकर एक बार फिर से गंभीर चिंता उत्पन्न कर दी है। यह हादसा उड़ान भरने के कुछ ही समय बाद हुआ, जिसमें कई लोगों की जान चली गई और भारी नुकसान हुआ। राहत और बचाव दल तुरंत घटनास्थल पर पहुंचा, लेकिन दुर्घटना के असली कारणों का पता लगाने में सबसे अहम भूमिका निभाएगा विमान का Black box, जो हर विमान दुर्घटना की जांच में एक अत्यंत आवश्यक उपकरण होता है।

What is a black box?

ब्लैक बॉक्स दरअसल दो महत्वपूर्ण हिस्सों से मिलकर बना होता है — कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)। सीवीआर पायलटों की बातचीत, कॉकपिट की आवाजें और इंजन की ध्वनियों को रिकॉर्ड करता है, जबकि एफडीआर विमान की ऊंचाई, गति, दिशा, इंजन की स्थिति और अन्य तकनीकी आंकड़ों को दर्ज करता है। ये दोनों मिलकर यह स्पष्ट करते हैं कि दुर्घटना से पहले और दौरान विमान में क्या हुआ।

History and development of the black box

ब्लैक बॉक्स की कल्पना सबसे पहले 1950 के दशक में ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डॉ. डेविड वॉरेन ने की थी। उन्होंने महसूस किया कि विमान दुर्घटनाओं की सही जांच के लिए कॉकपिट की गतिविधियों को रिकॉर्ड करना जरूरी है। हालांकि शुरुआती दौर में उनके विचार को नकार दिया गया, लेकिन समय के साथ इस तकनीक को वैश्विक मान्यता मिली। आज यह हर वाणिज्यिक विमान में अनिवार्य उपकरण बन चुका है।

How does a black box work?

ब्लैक बॉक्स को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह भयंकर दुर्घटनाओं में भी सुरक्षित रह सके। यह अत्यधिक तापमान (1000°C से अधिक), गहरे पानी का दबाव और तीव्र टक्कर को भी सहन कर सकता है। एफडीआर में कई घंटों की उड़ान से संबंधित डेटा संग्रहित होता है, जिसे बाद में जांचकर्ता एनिमेशन के रूप में प्रस्तुत कर दुर्घटना की स्थिति का विश्लेषण करते हैं। इसी तरह, सीवीआर की ऑडियो रिकॉर्डिंग को ट्रांसक्राइब कर अंतिम क्षणों की सटीक जानकारी प्राप्त की जाती है।

Why is it called a “black box”?

हालांकि इसका नाम “ब्लैक बॉक्स” है, लेकिन वास्तव में यह चटख नारंगी रंग का होता है ताकि मलबे में इसे आसानी से ढूंढा जा सके। “ब्लैक बॉक्स” शब्द की उत्पत्ति कंप्यूटर विज्ञान से हुई मानी जाती है, जहां किसी ऐसी प्रणाली को संदर्भित किया जाता है जिसकी आंतरिक प्रक्रिया स्पष्ट नहीं होती।

दुर्घटना के बाद ब्लैक बॉक्स को आमतौर पर विमान के पिछले हिस्से (टेल सेक्शन) में खोजा जाता है, जो टक्कर में कम क्षतिग्रस्त होता है। यदि विमान पानी में गिरा हो, तो यह एक विशेष सिग्नल छोड़ता है जिसे 30 दिनों तक ट्रैक किया जा सकता है। ब्लैक बॉक्स मिलने के बाद उसे विशेष प्रयोगशालाओं जैसे दिल्ली स्थित फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और वॉयस रिकॉर्डर लैब में भेजा जाता है, जहां से डेटा निकाला और विश्लेषित किया जाता है।

Limitations and Challenges

ब्लैक बॉक्स अत्यंत उपयोगी होते हैं, लेकिन इनमें कुछ सीमाएं भी होती हैं। उदाहरण के लिए, मलेशिया एयरलाइंस फ्लाइट MH370 के मामले में ब्लैक बॉक्स का सिग्नल कभी नहीं मिल पाया, जिससे जांच अधूरी रह गई। कभी-कभी डिवाइस इतना क्षतिग्रस्त हो जाता है कि डेटा रिकवर नहीं हो पाता। ऐसे उदाहरण यह बताते हैं कि आगे चलकर क्लाउड-आधारित डेटा स्टोरेज जैसी नई तकनीकों की आवश्यकता पड़ सकती है।